इक ख़्वाब है ज़रूरी
इक ख़्वाब है ज़रूरी सबके जीने के लिए ,
ख़्वाब वो बन्द आँखों का नहीं ,
मग़र वो जो रातों को जगाये ,
उस ख़्वाब में जागने का नशा और है.….
यहाँ फैला हो कितना ही अँधेरा चाहे ,
इक रोशनी आगे चलती है ,
माँ बाप के दिल से निकली ,
हर राह दिखाने वाली वो दुआ और है.…
लेकर सहारा किसी और का हम क्यूँ चलें ,
चलते चलते गिरना , गिर कर उठना ,
और उठ कर लड़खड़ाते हुए,
एक बार फिर चलने का मज़ा और है.….
है माना मुश्किल भागना सपनों के पीछे ,
नामुमकीन लेकिन नहीं कुछ भी ,
कोशिशें कामयाब होती ही हैं ,
सपने फिर हकीक़त होने का समां और है.…
नम्रता झा
1 comment:
"नामुमकीन लेकिन नहीं कुछ भी
कोशिशें कामयाब होती ही हैं"
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