अलविदा ख़्वाबों को
अलविदा कह के जब आये तुम्हें,
हम और ही गुमान में थे..
नहीं इश्क़ तुम्हें ना सही,
भुला देंगे हम भी सब...
वो रातों का जागना,
वो खोये खोये मुस्कुराना,
वो ख़यालों के पंख लगा,
तुम्हारे साथ आसमान की सैर,
वो आँखें बंद कर के,
तुमको महसूस करना,
तुम्हारी बाँहों में बिखरने की
वो अलसाई ख्वाहिश भी,
और वो शरमाई सी तमन्ना
तुम्हारे होंठों को होंठों से छूने की...
उफ़! वो सब गुलाबी सपने
आँखों में दोबारा तैरने लगे...
फ़िर जैसे नज़र धुंधला गयी,
और गालों से कुछ गुज़रा,
हाथ लगा कर जो देखा,
ये तो अपना ही दिल था,
जो बह रहा था पिघल पिघल कर,
आँखों के रास्ते....
नम्रता झा