और सही
अलग बहुत हैं दिल्लगी और दिल की लगी ,
इस दिल को फ़र्क मग़र नज़र नहीं आता ,
ये इक दीवाना और सही ....
कुछ तो चाहत उनको भी है ज़रूर ,
ख़त पढ़ के मुस्कुराते बहुत हैं ,
ये इक बहाना और सही ...
चिराग़ उम्मीद का रौशन रहा है ,
सदियों यूँ ही मेरे तसव्वुर में ,
ये इक ज़माना और सही ...
किस्से हजारों हैं देखे सुने सबने यहाँ ,
इश्क़ के और मुहब्बत के ,
ये इक फ़साना और सही ....
नम्रता झा
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