बारिश
पहली बारिश ,
यूँ इतनी पहली भी नहीं थी ,
मग़र आज बहुत पहली सी लगी ....
वो एक बूँद,
मेरे माथे से फिसल कर ,
जैसे मेरे गालों को चूमती सी लगी .....
वो एक टुकड़ा बादल,
खड़ा सब देखता रहा चुपचाप,
उसकी चुप्पी ज़रा बदतमीज़ी सी लगी .....
वो बिजली,
थोडा सा थर्राई थोडा सा गुर्राई,
नाराज़गी उसकी लेकिन हँसी सी लगी ....
वो हवा,
भागती रही हाथ छुड़ा इतने दिनों ,
आज पीछे से आ लिपटना बेशर्मी सी लगी ....
ये भीगा मौसम,
ऐसा जैसे वो पहला प्यार ,
आँख की कोर में फिर कुछ नमी सी लगी .....
नम्रता झा
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