रात
वो रात ,
वो पूरा चाँद ,
वो झोंके हवा के ,
रातरानी के गुच्छों से उठती,
वो ख़ुशबू भीनी भीनी ,
और तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ...
चाहा था सब थम के रह जाता उसी लम्हे में ,
मग़र वो हो ना सका ....
ख़ैर
आज फ़िर वही रात ,
वैसा ही पूरा चाँद ,
रातरानी आज भी महक रही है ,
तुम भी वही हो ,
हाथों में तुम्हारे हाथ मग़र आज किसी और का है ....
नम्रता झा
2 comments:
perfectly written..beautiful lines :)
Thank you Rahul!
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