क़ाश इक मुलाक़ात होती
क़ाश कभी होता ये के अचानक ,
तुमसे कहीं इक मुलाक़ात होती ..
ना देखी मैंने वैसी रात कभी ,
जैसी ख़ूबसूरत वो रात होती ..
चाँद भी पूरा होता फ़लक पर ,
चाँदनी की हम पर बरसात होती ..
यूँ रहते होंठ ख़ामोश ही ,
आँखों से मग़र अपनी बात होती ..
जितनी अधूरी हूँ तुम बिन आज ,
उतनी पूरी मैं उस रात होती ..
जो होता अपने दरमियाँ उस रात ,
गवाह उसकी सारी कायनात होती ..
होती नहीं कभी सुबह जिसकी ,
वैसी क़ाश वो इक रात होती ..
क़ाश कभी होता ये के अचानक ,
तुमसे कहीं इक मुलाक़ात होती ...
नम्रता झा
2 comments:
awesome...
rhyme bhi hai... :P
lol...
n thnks btw...:)
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