हर शख्स जो यहाँ मिलता है हमसफ़र नहीं होता…
सरहदें तय रखिये अपने जज़्बात के खुद ही,
हर शख्स जो यहाँ मिलता है हमसफ़र नहीं होता…
एक उम्र निकल जाती है आशियाना बनाते,
ईंट पत्थर से बना हर मकान घर नहीं होता…
ख़्वाब देखने की आज़ादी है बेशक़ आपको,
हर ख्वाहिश पूरी भी हो ऐसा मग़र नहीं होता…
दुआ में हाथ उठते हैं सबके एक से फ़िर भी,
कोई रंग लाती है और किसी में असर नहीं होता…
हैरान मत हुआ कीजिये गैरों की आबादी देख,
अपना किसी का कभी सारा शहर नहीं होता…
सरहदें तय रखिये अपने जज़्बात के खुद ही,
हर शख्स जो यहाँ मिलता है हमसफ़र नहीं होता…
नम्रता झा
2 comments:
awesome :)
Thank you!! but actually its not.. and I am not being modest..
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